नफरतें आम सही...
नफरतें आम सही प्यार बढ़ा कर देखो,
इस अँधेरे में कोई शम्मा जलाकर देखो।
इस भटकती हुई दुनिया को मिलेगी मंज़िल,
मेरी आवाज़ में आवाज़ मिलाकर देखो।
ख्वाब-ए-आज़ादी को ताबीर भी मिल जाएगी,
मेरा फरमान-ए -मोहब्बत तो सुनाकर देखो।
ऐ गरीबों के मकानों को जलाने वालों,
शीशमहलों को हवा में उड़ाकर देखो।
सख्त बेरहम है ज़रदार ऐ बिकने वालो,
बेज़मीरी का जरा पर्दा हटाकर देखो।
रेख्ता हिन्दू-मुसलमान हैं भाई-भाई,
फिर वो ही भूला हुआ नारा लगाकर देखो
वो मुल्क़ कभी...
जहाँ पक्षपात के फैले जाल होते हैं,
वहाँ हुनरमंदों के सपने बेहाल होते हैं,
वो मुल्क़ कभी तरक्की नहीं कर सकता,
जहाँ के वज़ीर ही दलाल होते हैं।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
www.afazapne.blogspot.com is the best