Dr. Kumar Vishwas

Dr. Kumar Vishwas  ji ke geet :: Gajal :: Muktak

Somthing About Dr. Kumar Vishwas:  

Born: 10 February 1970 (age 48 years), PilkhuwaSpouse: Manju SharmaBooks: Koi deewana kehta hai

Education: Chaudhary Charan Singh University (2000), Chaudhary Charan Singh University (1993)
Children: Agrata Vishwas, Kuhu Vishwas
                                        


जब भी मुँह ढक लेता हूँ

जब भी मुँह ढक लेता हूँ
तेरे जुल्फों के छाँव में
कितने गीत उतर आते है
मेरे मन के गाँव में

एक गीत पलकों पर लिखना
एक गीत होंठो पर लिखना
यानि सारी गीत हृदय की
मीठी-सी चोटों पर लिखना
जैसे चुभ जाता है कोई काँटा नँगे पाँव में
ऐसे गीत उतर आते हैं, मेरे मन के गाँव में

पलकें बंद हुई तो जैसे
धरती के उन्माद सो गये
पलकें अगर उठी तो जैसे
बिन बोले संवाद हो गये
जैसे धूप, चुनरिया ओढ़, आ बैठी हो छाँव में
ऐसे गीत उतर आते हैं, मेरे मन के गाँव में

जाने कौन डगर ठहरेंगे ..

कुछ छोटे सपनो के बदले,
बड़ी नींद का सौदा करने,
निकल पडे हैं पांव अभागे,जाने कौन डगर ठहरेंगे !
वही प्यास के अनगढ़ मोती,
वही धूप की सुर्ख कहानी,
वही आंख में घुटकर मरती,
आंसू की खुद्दार जवानी,
हर मोहरे की मूक विवशता,चौसर के खाने क्या जाने
हार जीत तय करती है वे, आज कौन से घर ठहरेंगे 
निकल पडे हैं पांव अभागे,जाने कौन डगर ठहरेंगे !

कुछ पलकों में बंद चांदनी,
कुछ होठों में कैद तराने,
मंजिल के गुमनाम भरोसे,
सपनो के लाचार बहाने,
जिनकी जिद के आगे सूरज, मोरपंख से छाया मांगे,
उन के भी दुर्दम्य इरादे, वीणा के स्वर पर ठहरेंगे 
निकल पडे हैं पांव अभागे,जाने कौन डगर ठहरेंगे

पगली लड़की 

मावस की काली रातों में दिल का दरवाजा खुलता है,
जब दर्द की काली रातों में गम आंसू के संग घुलता है,
जब पिछवाड़े के कमरे में हम निपट अकेले होते हैं,
जब घड़ियाँ टिक-टिक चलती हैं,सब सोते हैं, हम रोते हैं,
जब बार-बार दोहराने से सारी यादें चुक जाती हैं,
जब ऊँच-नीच समझाने में माथे की नस दुःख जाती है,
तब एक पगली लड़की के बिन जीना गद्दारी लगता है,
और उस पगली लड़की के बिन मरना भी भारी लगता है।

जब पोथे खाली होते है, जब हर्फ़ सवाली होते हैं,
जब गज़लें रास नही आती, अफ़साने गाली होते हैं,
जब बासी फीकी धूप समेटे दिन जल्दी ढल जता है,
जब सूरज का लश्कर छत से गलियों में देर से जाता है,
जब जल्दी घर जाने की इच्छा मन ही मन घुट जाती है,
जब कालेज से घर लाने वाली पहली बस छुट जाती है,
जब बेमन से खाना खाने पर माँ गुस्सा हो जाती है,
जब लाख मन करने पर भी पारो पढ़ने आ जाती है,
जब अपना हर मनचाहा काम कोई लाचारी लगता है,
तब एक पगली लड़की के बिन जीना गद्दारी लगता है,
और उस पगली लड़की के बिन मरना भी भारी लगता है।

जब कमरे में सन्नाटे की आवाज़ सुनाई देती है,
जब दर्पण में आंखों के नीचे झाई दिखाई देती है,
जब बड़की भाभी कहती हैं, कुछ सेहत का भी ध्यान करो,
क्या लिखते हो दिन भर, कुछ सपनों का भी सम्मान करो,
जब बाबा वाली बैठक में कुछ रिश्ते वाले आते हैं,
जब बाबा हमें बुलाते है,हम जाते में घबराते हैं,
जब साड़ी पहने एक लड़की का फोटो लाया जाता है,
जब भाभी हमें मनाती हैं, फोटो दिखलाया जाता है,
जब सारे घर का समझाना हमको फनकारी लगता है,
तब एक पगली लड़की के बिन जीना गद्दारी लगता है,
और उस पगली लड़की के बिन मरना भी भारी लगता है।

दीदी कहती हैं उस पगली लडकी की कुछ औकात नहीं,
उसके दिल में भैया तेरे जैसे प्यारे जज़्बात नहीं,
वो पगली लड़की मेरी खातिर नौ दिन भूखी रहती है,
चुप चुप सारे व्रत करती है, मगर मुझसे कुछ ना कहती है,
जो पगली लडकी कहती है, मैं प्यार तुम्ही से करती हूँ,
लेकिन मैं हूँ मजबूर बहुत, अम्मा-बाबा से डरती हूँ,
उस पगली लड़की पर अपना कुछ भी अधिकार नहीं बाबा,
सब कथा-कहानी-किस्से हैं, कुछ भी तो सार नहीं बाबा,
बस उस पगली लडकी के संग जीना फुलवारी लगता है,
और उस पगली लड़की के बिन मरना भी भारी लगता है।

बस्ती बस्ती घोर उदासी

बस्ती बस्ती घोर उदासी पर्वत पर्वत खालीपन
मन हीरा बेमोल बिक गया घिस घिस रीता तन चंदन
इस धरती से उस अम्बर तक दो ही चीज़ गज़ब की है
एक तो तेरा भोलापन है एक मेरा दीवानापन||1|| 

जिसकी धुन पर दुनिया नाचे, दिल एक ऐसा इकतारा है,
जो हमको भी प्यारा है और, जो तुमको भी प्यारा है.
झूम रही है सारी दुनिया, जबकि हमारे गीतों पर,
तब कहती हो प्यार हुआ है, क्या अहसान तुम्हारा है||2||

जो धरती से अम्बर जोड़े, उसका नाम मोहब्बत है ,
जो शीशे से पत्थर तोड़े, उसका नाम मोहब्बत है ,
कतरा कतरा सागर तक तो,जाती है हर उमर मगर ,
बहता दरिया वापस मोड़े, उसका नाम मोहब्बत है||3||

बहुत टूटा बहुत बिखरा थपेड़े सह नहीं पाया
हवाओं के इशारों पर मगर मैं बह नहीं पाया
रहा है अनसुना और अनकहा ही प्यार का किस्सा
कभी तुम सुन नहीं पायी कभी मैं कह नहीं पाया||4||

तुम्हारे पास हूँ लेकिन जो दूरी है समझता हूँ
तुम्हारे बिन मेरी हस्ती अधूरी है समझता हूँ
तुम्हे मैं भूल जाऊँगा ये मुमकिन है नहीं लेकिन
तुम्ही को भूलना सबसे ज़रूरी है समझता हूँ||5||

पनाहों में जो आया हो तो उस पर वार करना क्या
जो दिल हारा हुआ हो उस पर फिर अधिकार करना क्या
मुहब्बत का मज़ा तो डूबने की कश्मकश में है
हो गर मालूम गहराई तो दरिया पार करना क्या||6||

समन्दर पीर का अन्दर है लेकिन रो नहीं सकता
ये आँसू प्यार का मोती है इसको खो नहीं सकता
मेरी चाहत को दुल्हन तू बना लेना मगर सुन ले
जो मेरा हो नहीं पाया वो तेरा हो नहीं सकता||7||

पुकारे आँख में चढ़कर तो खू को खू समझता है,
अँधेरा किसको को कहते हैं ये बस जुगनू समझता है,
हमें तो चाँद तारों में भी तेरा रूप दिखता है,
मोहब्बत में नुमाइश को अदाएं तू समझता है||8|| 

गिरेबां चाक करना क्या है, सीना और मुश्किल है,
हर एक पल मुस्काराकर अश्क पीना और मुश्किल है 
हमारी बदनसीबी ने हमें इतना सिखाया है,
किसी के इश्क में मरने से जीना और मुश्किल है||9||

मेरा अपना तजुर्बा है तुम्हें बतला रहा हूँ मैं 
कोई लब छू गया था तब अभी तक गा रहा हूँ मैं 
फिराके यार में कैसे जिया जाये बिना तड़पे 
जो मैं खुद ही नहीं समझा वही समझा रहा हूँ मैं||10||

किसी पत्थर में मूरत है कोई पत्थर की मूरत है 
लो हमने देख ली दुनिया जो इतनी ख़ूबसूरत है 
ज़माना अपनी समझे पर मुझे अपनी खबर ये है 
तुम्हें मेरी जरूरत है मुझे तेरी जरूरत है||11||



मैं तुम्हें ढूंढने स्वर्ग के द्वार तक



मैं तुम्हें ढूंढने स्वर्ग के द्वार तक


रोज़ जाता रहा, रोज़ आता रहा


तुम ग़ज़ल बन गईं, गीत में ढल गईं


मंच से मैं तुम्हें गुनगुनाता रहा




ज़िन्दगी के सभी रास्ते एक थे


सबकी मंज़िल तुम्हारे चयन तक रही


अप्रकाशित रहे पीर के उपनिषद्


मन की गोपन कथाएँ नयन तक रहीं


प्राण के पृष्ठ पर प्रीति की अल्पना


तुम मिटाती रहीं मैं बनाता रहा




एक ख़ामोश हलचल बनी ज़िन्दगी


गहरा ठहरा हुआ जल बनी ज़िन्दगी


तुम बिना जैसे महलों मे बीता हुआ


उर्मिला का कोई पल बनी ज़िन्दगी


दृष्टि आकाश में आस का इक दीया


तुम बुझाती रहीं, मैं जलाता रहा




तुम चली तो गईं, मन अकेला हुआ


सारी यादों का पुरज़ोर मेला हुआ


जब भी लौटीं नई ख़ुश्बुओं में सजीं


मन भी बेला हुआ, तन भी बेला हुआ


ख़ुद के आघात पर, व्यर्थ की बात पर




रूठतीं तुम रहीं मैं मनाता रहा


All Kumar Vishwas Poems/Shayari Collection ~
Jaha Par Khtam Hoti Thi Meri Khawaish Ki Jid Kal Tak,
Usi Ek Mod Tak Khud Ke Safar Ko Mood Rakha Hai,
Kitab-E-Jindagi Yu Padh Rahi Hai Aaj Kal Duniya,
Tumhare Naam Ko Ab Bhi adhura Chod Rakha Hai…
Dr. Kumar Vishwas Poems
Falak Pe Bhor Ke Dulhan Yu Saj Ke Aayi Hai,
Ye Din Ugha Hai Ya Suraj Ke Ghar Sagayi Hai,
Abhi Bhi Aate Hai Aansu Meri Kahani Mein,
Kalam Mein Shukar-E-Ada Ki Roshanayi Hai.
Dr. Kumar Vishwas Poems
Hame Malum Hai Do Dil Judai Seh Nahi Sakte,
Magar Rasme Wafa Ye Hai Ki Ye Bhi Keh Nahi Sakte,
Jara Kuch Dair Tum Unn Sahilo Ki Chik Sun Bhar Lo,
Jo Lehro Mein To Dube Hai Magar Sang Beh Nahi Sakte.
Dr. Kumar Vishwas Poems
Ye Dil Barbaad Karke Su Mein Kyun Abaad Rehte Ho,
Koi Kal Keh Raha Tha Tum Allahabad Rehte Ho…
Ye Kaisi Shohratein Mujhko Ata Kar Di Mere Maula,
Main Sabh Kuch Bhool Jaata Hoon Magar Tum Yaad Rehte Ho…
Dr. Kumar Vishwas Poems
Panahon Mein Jo Aaya Ho To Us Par Vaar Kya Karna,
Jo Dil Hara Hua Ho Us Pe Fir Adhikaar Kya Karna…
Mohabbat Ka Maza To Doobne Ki Kashmakash Mein Hai,
Jo Ho Maloom Gehrayi To Dariya Paar Kya Karna…
Dr. Kumar Vishwas Poems
Hamare Sher Sun Kar Bhi Jo Khamosh Itna Hai,
Khuda Jaane Guroor-e-Husn Mein Madhosh Kitna Hai…
Kisi Pyale Se Poocha Hai Suraahi Main Sabab Mein Ka,
Jo Khud Behosh Ho Wo Kya Bataye Ke Hosh Kitna Hai…..
Dr. Kumar Vishwas Poems
Wo Jiska Teer Chupke Se Jigar Ke Paar Hota Hai,
Wo Koi Gair Kya Apna Hi Rishtedaar Hota Hai…
Kise Se Apne Dil Ki Baat Tu Kehna Na Bhoole Se,
Yahan Khat Bhi Thodi Der Se Akhbaar Hota Hai….
Dr. Kumar Vishwas Poems
Jab Aata Hai Jeevan Mein Halaaton Ka Hungama,
Jazbaton, Mulakaton, Haseen Baaton Ka Hungama…
Jawani Ke Qayamat Daur Mein Ye Soch Te Hain Sabh,
Ye Hungame Ki Raatein Hain Ya Raaton Ka Hungama……
Dr. Kumar Vishwas Poems
Na Paane Ki Khushi Hai Kuch Na Khone Ka Hi Kuch Gam Hai….
Ye Daulat Aur Shohrat Sirf Kuch Zakhmo Ka Marham Hai…
Ajab Si Kashmakash Hai Roz Jeene, Roz Marne Me….
Mukkammal Zindagi To Hai Magar Poori Se Kuch Kam Hai….
Dr. Kumar Vishwas Poems
Koi Khamosh Hai Itna, Bahane Bhool Aaya Hoon…
Kisi Ki Ik Taranum Mein Taraane Bhool Aaya Hoon….
Meri Ab Raah Mat Takna Kabhi e Aasmaan Walo….
Main Ik Chidiya Ki Aankhon Mein Udaane Bhool Aaya Hoon….

Dr. Kumar Vishwas Poems

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