इंतजारों के कांटों को मैं चुनता चला गया
पल पल गिरे आंसू को गिनता चला गया
रिश्तों ने हर कदम पर मुझको बहुत टोका
मगर मैं तेरी बात को बस सुनता चला गया
अब तुम ही खफा हो तो बताओ क्या करूं
तेरा जवाब न मिला तो सिर धुनता चला गया
कुछ दिन में शायद सबकुछ ठीक हो जाए
इसी उम्मीद में ये गजल मैं बुनता चला गया
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