सुना है वो हमको भुलाने लगे हैं,
जिनको पाने में हमको ज़माने लगे हैं,
वो उलझी सी बातें,वो धुंधले से चेहरे,
सपनों में फिर से आने-जाने लगे हैं।
पकड़कर उंगली जिन्हें चलना सिखाया,
वो रिश्ते ही हमें आज आजमाने लगे हैं,
छोड़ आए थे जिनको हम मंजिल के खातिर,
वो रास्ते फिर से हमें बुलाने लगे हैं।
थक गए थे हम बातों में मिलावट से लेकिन,
वो फिर से हमें मनाने लगे हैं,
पास से न सही, दूर से ही सही,
वो हमें देखकर मुस्कुराने लगे हैं।
क्या बात है, क्यों बदली सी फिज़ा है?
वो नज़रों से नज़रें मिलाने लगे हैं,
जो न सीखे थे जिंदगी में झुकना कभी,
वो सजदे पर सिर झुकाने लगे हैं।
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