CL Story1. Yaden....
शरारत का पिटारा थी वो। मल्लब हर समय खुराफात। अरेंज मैरिज हुई थी हमारी पर काण्ड लव-लपाटे वाले लौंडो से कहीं ज्यादा कर रखे थे हमने। प्यार क्या होता है उसकी शरारतों ने सिखाया हमको। पागल थी एकदम। पागल। एविएटर लगा के फोटू खींचाना, स्कूटी चलाते वक़्त अचानक से ब्रेक लगा के पूछना "मज़ा आया?" सब्जी वाले से झगड़ा करके धनिया मिर्चा फ्री में रखवाना, हमारे गुदगुदी लगाना और न जाने क्या क्या! उसकी आदतों की आदत हो चली थी हमको।
हर शब्द में “ओ” की मात्रा लगा के स्पैनिश ऐक्सेंट बना लेती थी और जब स्पैनिश से पेट भर जाए तो हर शब्द के पहले “अल” लगा के अरेबियन कर देती। मेरी दुनिया की पाब्लो एसकोबार थी। एकदम जिद्दी। जो भी चाहती हासिल कर लेती थी। उसको हम प्यार से अल-गुलाबो बुलाते।
गुस्से से डाँट के अक्सर हम कहते कि "तुम्हारी उम्र नही है यूँ धमा चौकड़ी करने की। बूढ़ी हो रही हो। हाथ पैर मोचा गया तो सारा काम हमको ही करना पड़ेगा। अकेले" और वो हर बार शरारत से एक ही जवाब देती कि "तुम्हारे साथ ही मरेंगे अकेले नहीं।"
कपड़ें लत्ते का ढेर शौक नहीं था उसको। हाँ पर जब हम नाराज होते तो हमारी गिफ्ट की हुई साड़ी पहन के मेरे आस पास मंडराया करती। वो भी तबतक जबतक हम हंस न दें। उसे सब आता था। प्यार करना, शिकायतें करना, मनाना, रूठना और गुस्से मे गटागट गटागट पेग मारना।
अपने हिसाब से दुनिया रचती। उसमे खुद रहती, हमको रखती और सारा दिन इधर उधर धमा चौकड़ी मचाती रहती। छुट्टियों मे पकौड़ियाँ बनाती और बर्तन हमसे मंजवाती। जब गुस्सा होती तो बिना बोले और ज्यादा काम करती। बिना बोले सारी शिकायत करती और तबतक ना मानती जबतक ढंग से सुना न लेती।
एक ज़िन्दगी में आपको कितनी बार प्यार हो सकता है? एक बार? दो बार? चार बार? बहत्तर बार? हमें हर रोज़ प्यार होता था उससे। हर रोज़। आफिस टूर पे जब हम शहर से बाहर होते तो मेरी मनपसन्द फिल्मे देख लेती। बहुत ज्यादा प्यार फूटता तो मेरे धुले कपड़े दोबारा धुल प्रेस करके सज़ा के रख देती।
रात सीने पे सिर रख के बेसुरा गाना गाती। और हम कहीं लिरिक्स भूल जाएं तो रूक के टोकती, लिरिक्स सही कराती और फिर से उसी अन्तरे से गाना गवाती। क्रिकेट मैच पे पांच पांच सौ की शर्त लगाती। जीतती तो शर्ट की जेब से निकाल लेती। हारती तो पैंट की जेब से निकाल के शर्ट की जेब में डाल देती।
बहोत खूबसूरत थी वो। सादगी उसका श्रृंगार थी। किसी भी चीज का शौक नहीं हर परिस्थिति में खुश। हर गम में खुश। मुफ़लिसी रईसी सब साथ गुज़ारी हमनें। उसने सब शरारत करते हुए बखूबी निभाया। सब कुछ।
एक सुबह यूँ ही किसी मज़ाक पे हँसते हँसते उसकी साँसे फूलने लगी। डॉक्टर को दिखाया तो मालूम चला दिल की कोई लाइलाज बीमारी है उसे। उसे मरने का डर नही था मेरे अकेले हो जाने का था। उस दौरे के बाद हर रोज उसकी आंखों में बस खुद को देखा था हमने। हर पल। जैसे वो हर हर पल बस मेरे साथ जीना चाहती हो। मेरे साथ रहना चाहती हो।
एक रात हमारे सीने पे सर रख के वो गाना गुनगुना रही थी। पंखे की तरफ देखते हुए न जाने हम क्या सोचे जा रहे थे! उसने टोकते हुए कहा
"इसके आगे गाओ न.."
"hmmm कहाँ पे थे हम?" (हमने चौंक कर कहा)
"हमको मिली है आज ये घड़ियां नसीब से.."
हम दोनो साथ में गुनगुना रहे थे। उसके हाथों की पकड़ और तेज़ हो रही थी। हमें उसकी गर्म सांसो के साथ सीने पे उसकी आंसू की बूंदे टिप टिप गिरती महसूस हो रही थी। चुप कराने के लिए उसके बालों में हम हाथ फेर रहे थे।
कुछ देर बाद एहसास हुआ हमारी गलत लिरिक्स पे वो हमको टोक नहीं रही। "अल-गुलाबो, अल-गुलाबो" हमने हल्के हल्के आवाज़ दी। न आंसू की बूंदे थी और न गर्म साँस की लरज। वो जा चुकी थी। शरारत करते हुए। अपनी फितरत जैसे।
उसके जाने के बाद हम दूसरी शादी नहीं कर पाए। ऐसा नहीं कि घर वालों ने दबाव नही डाला पर हम अपने हिस्से का सारा प्यार उससे कर चुके थे। अब जब वो याद आती है तो अपने धुले कपड़ें दोबारा धुल लेते हैं और बहुत ज्यादा मिस किया तो पकौड़ी बना के बर्तन धो लेते है।
ज़िन्दगी मस्त कट रही है। हाँ अब कोई मेरे गाने की गलत लिरिक्स को सही नहीं कराता और न ही हर शब्द के पहले "अल" और अंत में "ओ" की मात्रा लगाता है।
शरारत का पिटारा थी वो। मल्लब हर समय खुराफात। अरेंज मैरिज हुई थी हमारी पर काण्ड लव-लपाटे वाले लौंडो से कहीं ज्यादा कर रखे थे हमने। प्यार क्या होता है उसकी शरारतों ने सिखाया हमको। पागल थी एकदम। पागल। एविएटर लगा के फोटू खींचाना, स्कूटी चलाते वक़्त अचानक से ब्रेक लगा के पूछना "मज़ा आया?" सब्जी वाले से झगड़ा करके धनिया मिर्चा फ्री में रखवाना, हमारे गुदगुदी लगाना और न जाने क्या क्या! उसकी आदतों की आदत हो चली थी हमको।
हर शब्द में “ओ” की मात्रा लगा के स्पैनिश ऐक्सेंट बना लेती थी और जब स्पैनिश से पेट भर जाए तो हर शब्द के पहले “अल” लगा के अरेबियन कर देती। मेरी दुनिया की पाब्लो एसकोबार थी। एकदम जिद्दी। जो भी चाहती हासिल कर लेती थी। उसको हम प्यार से अल-गुलाबो बुलाते।
गुस्से से डाँट के अक्सर हम कहते कि "तुम्हारी उम्र नही है यूँ धमा चौकड़ी करने की। बूढ़ी हो रही हो। हाथ पैर मोचा गया तो सारा काम हमको ही करना पड़ेगा। अकेले" और वो हर बार शरारत से एक ही जवाब देती कि "तुम्हारे साथ ही मरेंगे अकेले नहीं।"
कपड़ें लत्ते का ढेर शौक नहीं था उसको। हाँ पर जब हम नाराज होते तो हमारी गिफ्ट की हुई साड़ी पहन के मेरे आस पास मंडराया करती। वो भी तबतक जबतक हम हंस न दें। उसे सब आता था। प्यार करना, शिकायतें करना, मनाना, रूठना और गुस्से मे गटागट गटागट पेग मारना।
अपने हिसाब से दुनिया रचती। उसमे खुद रहती, हमको रखती और सारा दिन इधर उधर धमा चौकड़ी मचाती रहती। छुट्टियों मे पकौड़ियाँ बनाती और बर्तन हमसे मंजवाती। जब गुस्सा होती तो बिना बोले और ज्यादा काम करती। बिना बोले सारी शिकायत करती और तबतक ना मानती जबतक ढंग से सुना न लेती।
एक ज़िन्दगी में आपको कितनी बार प्यार हो सकता है? एक बार? दो बार? चार बार? बहत्तर बार? हमें हर रोज़ प्यार होता था उससे। हर रोज़। आफिस टूर पे जब हम शहर से बाहर होते तो मेरी मनपसन्द फिल्मे देख लेती। बहुत ज्यादा प्यार फूटता तो मेरे धुले कपड़े दोबारा धुल प्रेस करके सज़ा के रख देती।
रात सीने पे सिर रख के बेसुरा गाना गाती। और हम कहीं लिरिक्स भूल जाएं तो रूक के टोकती, लिरिक्स सही कराती और फिर से उसी अन्तरे से गाना गवाती। क्रिकेट मैच पे पांच पांच सौ की शर्त लगाती। जीतती तो शर्ट की जेब से निकाल लेती। हारती तो पैंट की जेब से निकाल के शर्ट की जेब में डाल देती।
बहोत खूबसूरत थी वो। सादगी उसका श्रृंगार थी। किसी भी चीज का शौक नहीं हर परिस्थिति में खुश। हर गम में खुश। मुफ़लिसी रईसी सब साथ गुज़ारी हमनें। उसने सब शरारत करते हुए बखूबी निभाया। सब कुछ।
एक सुबह यूँ ही किसी मज़ाक पे हँसते हँसते उसकी साँसे फूलने लगी। डॉक्टर को दिखाया तो मालूम चला दिल की कोई लाइलाज बीमारी है उसे। उसे मरने का डर नही था मेरे अकेले हो जाने का था। उस दौरे के बाद हर रोज उसकी आंखों में बस खुद को देखा था हमने। हर पल। जैसे वो हर हर पल बस मेरे साथ जीना चाहती हो। मेरे साथ रहना चाहती हो।
एक रात हमारे सीने पे सर रख के वो गाना गुनगुना रही थी। पंखे की तरफ देखते हुए न जाने हम क्या सोचे जा रहे थे! उसने टोकते हुए कहा
"इसके आगे गाओ न.."
"hmmm कहाँ पे थे हम?" (हमने चौंक कर कहा)
"हमको मिली है आज ये घड़ियां नसीब से.."
हम दोनो साथ में गुनगुना रहे थे। उसके हाथों की पकड़ और तेज़ हो रही थी। हमें उसकी गर्म सांसो के साथ सीने पे उसकी आंसू की बूंदे टिप टिप गिरती महसूस हो रही थी। चुप कराने के लिए उसके बालों में हम हाथ फेर रहे थे।
कुछ देर बाद एहसास हुआ हमारी गलत लिरिक्स पे वो हमको टोक नहीं रही। "अल-गुलाबो, अल-गुलाबो" हमने हल्के हल्के आवाज़ दी। न आंसू की बूंदे थी और न गर्म साँस की लरज। वो जा चुकी थी। शरारत करते हुए। अपनी फितरत जैसे।
उसके जाने के बाद हम दूसरी शादी नहीं कर पाए। ऐसा नहीं कि घर वालों ने दबाव नही डाला पर हम अपने हिस्से का सारा प्यार उससे कर चुके थे। अब जब वो याद आती है तो अपने धुले कपड़ें दोबारा धुल लेते हैं और बहुत ज्यादा मिस किया तो पकौड़ी बना के बर्तन धो लेते है।
ज़िन्दगी मस्त कट रही है। हाँ अब कोई मेरे गाने की गलत लिरिक्स को सही नहीं कराता और न ही हर शब्द के पहले "अल" और अंत में "ओ" की मात्रा लगाता है।
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