जनता का हक़ मिले कहाँ से, चारों ओर दलाली है |
चमड़े का दरवाज़ा है और कुत्तों की रखवाली है ||
मंत्री, नेता, अफसर, मुंसिफ़ सब जनता के सेवक हैं |
ये जुमला भी प्रजातंत्र के मुख पर भद्दी गाली है ||
उसके हाथों की कठपुतली हैं सत्ता के शीर्षपुरुष |
कौन कहे संसद में बैठा गुंडा और मवाली है ||
सत्ता बेलगाम है जनता गूँगी बहरी लगती है |
कोई उज़्र न करने वाला कोई नहीं सवाली है ||
सच को यूँ मजबूर किया है देखो झूठ बयानी पर |
माला फूल गले में लटके पीछे सटी दोनाली है ||
दौलत शोहरत बँगला गाड़ी के पीछे सब भाग रहे हैं |
फसल जिस्म की हरी भरी है ज़हनी रक़बा खाली है ||
सच्चाई का जुनूँ उतरते ही हम मालामाल हुए |
हर सूँ यही हवा है रिश्वत हर ताली ताली है ||
वो सावन के अंधे हैं उनसे मत पूँछो रुत का हाल |
उनकी खातिर हवा रसीली चारों सूँ हरियाली है ||
पंचशील के नियमो में हम खोज रहे हैं सुख साधन |
चारों ओर महाभारत है दाँव चढ़ी पञ्चाली है ||
पहले भी मुगलों-अंग्रेजो ने जनता का खून पिया |
आज 'विप्लवी' भेष बदलकर नाच रही खुशहाली है ||
accha hai..
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