हमारे दिल में भी...

हमारे दिल में भी...

हमारे दिल में भी झांको अगर मिले फुर्सत, 
हम अपने चेहरे से इतने नज़र नहीं आते।






मेरे वजूद की हद...

मेरे वजूद की हद...

मुझको मेरे वजूद की हद तक न जानिए, 
बेहद हूँ बेहिसाब हूँ बेइन्तहा हूँ मैं।


प्यार की कदर...

प्यार की कदर...

न थी जिसको मेरे प्यार की कदर, 
इत्तेफ़ाक से उसी को चाह रहा था मैं, 
उसी दिए ने जलाया मेरे हाथ को, 
जिस को हवा से बचा रहा था मैं।




कुछ तो तेरे मौसम...

कुछ तो तेरे मौसम...

कुछ तो तेरे मौसम ही मुझे रास कम आए, 
और कुछ मेरी मिट्टी में बग़ावत भी बहुत थी।





जाम होठों से लगाकर...

पीना काम आ गया...

लड़खड़ाये कदम तो गिरे उनकी बाँहों मे, 
आज हमारा पीना ही हमारे काम आ गया।

जाम होठों से लगाकर...

कभी देखेंगे ऐ जाम तुझे होठों से लगाकर, 
तू मुझमें उतरता है कि मैं तुझमें उतरता हूँ।






रख देंगे ज़िन्दगी तेरा...

रख देंगे ज़िन्दगी तेरा...

जिस दिन किताब-ए-इश्क की तक्मील हो गई, 
रख देंगे ज़िन्दगी तेरा... बस्ता उठा के हम।
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ताल्लुक़ का बोझ...

तमाम उम्र ताल्लुक़ का बोझ कौन सहे 
उसे कहो के चुका ले हिसाब कितने हैं।



चाँद सा चेहरा...

घनी जुल्फों के साये में चमकता चाँद सा चेहरा, 
तुझे देखूं तो कुछ रातें सुहानी याद आती हैं।




सलीके की दाद दे...

सलीके की दाद दे...

मेरी मोहब्बत की न सही, 
मेरे सलीके की तो दाद दे, 
तेरा ज़िक्र रोज करते हैं 
तेरा नाम लिए वगैर।


ज़िंदगी का इम्तिहान...

शायद यही ज़िंदगी का इम्तिहान होता है, 
हर एक शख्स किसी का गुलाम होता है, 
कोई ढूढ़ता है ज़िंदगी भर मंज़िलों को, 
कोई पाकर मंज़िलों को भी बेमुकाम होता है।



हम भी कभी इंसान थे...

हम भी कभी इंसान थे...

एक दिन निकला सैर को मेरे दिल में कुछ अरमान थे, 
एक तरफ थी झाड़ियाँ... एक तरफ श्मशान थे, 
पैर तले इक हड्डी आई उसके भी यही बयान थे, 
चलने वाले संभल कर चलना हम भी कभी इंसान थे।

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पत्थरों से दुआ...

जब मोहब्बत को लोग खुदा मानते हैं. 
फिर क्यूँ प्यार करने वालों को बुरा मानते हैं, 
माना कि ये ज़माना पत्थर दिल है, 
फिर क्यूँ लोग पत्थरों से दुआ माँगते हैं?


नफरतें आम सही...

नफरतें आम सही...

नफरतें आम सही प्यार बढ़ा कर देखो, 
इस अँधेरे में कोई शम्मा जलाकर देखो। 

इस भटकती हुई दुनिया को मिलेगी मंज़िल, 
मेरी आवाज़ में आवाज़ मिलाकर देखो। 

ख्वाब-ए-आज़ादी को ताबीर भी मिल जाएगी, 
मेरा फरमान-ए -मोहब्बत तो सुनाकर देखो। 

ऐ गरीबों के मकानों को जलाने वालों, 
शीशमहलों को हवा में उड़ाकर देखो। 

सख्त बेरहम है ज़रदार ऐ बिकने वालो, 
बेज़मीरी का जरा पर्दा हटाकर देखो। 

रेख्ता हिन्दू-मुसलमान हैं भाई-भाई, 
फिर वो ही भूला हुआ नारा लगाकर देखो

वो मुल्क़ कभी...

जहाँ पक्षपात के फैले जाल होते हैं, 
वहाँ हुनरमंदों के सपने बेहाल होते हैं, 
वो मुल्क़ कभी तरक्की नहीं कर सकता, 
जहाँ के वज़ीर ही दलाल होते हैं।

माँ की दुआ...

माँ की दुआ...

खयाल-ए-यार हर एक ग़म को टाल देता है, 
सुकून दिल को तुम्हारा जमाल देता। 
ये मेरी माँ की दुआओ का फ़ैज़ है मुझपर, 
मैं डूबता हूँ तो समंदर उछाल देता है। 

चलती हुई हवाओ से खुशबू महक उठी है, 
माँ-बाप की दुआओं से किस्मत चमक उठी है। 

गरीब हूँ किसी ज़रदार से नहीं मिलता, 
जमीर बेच कर किसी मक्कार से नहीं मिलता, 
जो हो सके तो इसको संभाल कर रखना, 
ये माँ का प्यार है बाजार में नहीं मिलता। 

एक बेवफा को मैंने गले से लगा लिया, 
हीरा समझ कर काँच का टुकड़ा उठा लिया, 
दुश्मन तो चाहता था मुझको मिटाना मगर, 
माँ की दुआओ ने शफ़ी मुझको बचा लिया। 

माँ पाली नहीं जाती...

माँ की दुआ कभी खाली नहीं जाती, 
माँ की बात कभी ताली नहीं जाती, 
अपने सब बच्चे पाल लेती है बर्तन धोकर, 
और बच्चों से एक माँ पाली नहीं जाती।



यादों की ज़िन्दगी...

यादों की ज़िन्दगी...

दीमक ज़दा किताब थी यादों की ज़िन्दगी, 
हर वर्क खोलने की ख्वाहिश में फट गया।


वो बेवफा हो गए...| दिल परेशान बहुत है..

वो बेवफा हो गए...

जो कहते थे हमसे हैं तेरे सनम, 
वो दगा दे गए देखते देखते। 

देते मोहब्बत का इनाम क्या, 
वो सजा दे गए देखते देखते। 

सोचता हूँ कि वो कितने मासूम थे , 
जो बेवफा हो गए देखते देखते।

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दिल परेशान बहुत है

ज़िन्दगी की कशमकश से परेशान बहुत है, 
दिल को न उलझाओ ये नादान बहुत है। 

यूं सामने आ जाने पर कतरा के गुजरना, 
वादे से मुकर जाना उसे आसान बहुत है। 

यादें भी हैं, तल्खी भी है, और है मोहब्बत, 
तू ने जो दिया दर्द का सामान बहुत है। 

अश्क कभी, लहू कभी, आँख से बरसे, 
बेदाग़ मोहब्बत का ये अंजाम बहुत है। 

तूने तो सुना होगा मेरे दिल का धड़कना, 
छूकर भी देख लेना ये बेजान बहुत है। 

बहुत तड़प लिए अब उससे बिछड़ कर, 
पा जाएँ खोने वाले को अरमान बहुत है।


बेवफाई की आँधियाँ...

बेवफाई की आँधियाँ...

ये चिराग-ए-जान भी अजीब है, 
कि जला हुआ है अभी तलक, 
उसकी बेवफाई की आँधियाँ तो, 
कभी की आ के गुजर गईं।


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फरिश्ते भी अब कहाँ...

फरिश्ते भी अब कहाँ...

फरिश्ते भी अब कहाँ जख्मों का इलाज करते हैं, 
बस तसल्ली देते है कि अब करते है, आज करते है। 

उनसे बिछड़कर हमको तो मिल गयी सल्तनत-ए-गजल, 
चलो नाम उनके हम भी जमाने के तख्तों-ताज करते है। 

नए चेहरों में अब पहली सी कशिश कहाँ है बाकी, 
अब तो बस पुरानी तस्वीर देखकर ही रियाज करते है। 

और एक दिन चचा "मीर" ने आकर ख्वाब में हमसे ये कहा, 
शायरी करो "रोशन" यहाँ बस शायरों का लिहाज करते है।


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बहुत दिन बाद...

बहुत दिन बाद...

बहुत दिन बाद शायद हम मुस्कुराये होंगे, 
वो भी अपने हुस्न पर खूब इतराये होंगे। 

संभलते-संभलते अब तक ना संभले हम, 
सोचो किस तरह उनसे हम टकराये होंगे। 

महक कोई आई है आँगन में कहीं से उड़कर 
शायद उन्होंने गेसू अपने हवा में लहराये होंगे। 

पीछे से तपाक से भर लिया बाँहों में उन्हें, 
वस्ल के वक्त वो बहुत घबराये होंगे। 

जब एक-दूसरे से बिछड़े होंगे वो दो पंछी 
बहुत कतराते कतराते पंख उन्होंने फहराये होंगे। 

जानते हो क्या इस ख़ुश-रू शख्स को, 
पहचान कर भी कहना पड़ा नहीं वो कोई पराये होंगे।




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